बियासी विधि से धान की खेती
What is biyasi or byasi in rice?
Biyasi or byasi is a method of rice or paddy cultivation. It is adopted in high rainfall areas, and especially in village areas. It is an intercultural operation in paddy field.
हमारे देश की कृषि का अधिकांश हिस्सा मानसून पर आधारित है। वर्षा पर आधारित कृषि को रैनफेड कृषि के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, और केरल ऐसे राज्य हैं जहाँ प्रतिवर्ष अधिक वर्षा होती है। इनमें से मध्यप्रदेश, झारखण्ड, तथा उड़ीसा के कुछ भागों और विशेषकर छत्तीसगढ़ में ब्यासी या बियासी विधि से एक बड़े पैमाने में धान की खेती की जाती है।
इसका मुख्य उद्देश्य पौध सघनता को कम करना व खरपतवार नष्ट करना है।
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Contents |
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(01). विधि |
(02). धान के बीज की बुवाई |
(03). सावधानियां एवं ध्यान रखने योग्य बातें |
(04). अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न |
(01). विधि
मानसून के प्रारंभ होते ही, अर्थात बरसात होने खेत की जुताई की जाती है। जुताई के लिए देशी हल और ट्रैक्टर का प्रयोग करते हैं। सबसे पहले ट्रैक्टर के द्वारा पहली जुताई करते हैं, इसके बाद 2 से 3 जुताई हल के द्वारा करते हैं।
(02). धान के बीज की बुवाई
अब धान के बीजों को छिड़काव विधि से बो दिया जाता है। छिड़काव के बाद यह बहुत जरूरी है कि बीजों को मृदा की परत से ढँक दिया जाय। अतः इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु देसी हल और पाटा का उपयोग करते हैं।
जब फसल लगभग 30 से 35 दिनों का हो जाता है उस समय धान के खेत में 15 से 20 सेमी जल भराव की स्थिति भी हो जाती है। इस स्थिति में बियासी यंत्र का उपयोग कर बियासी करते हैं। हालाँकि इस हेतु देशी हल को धान की खड़ी फसल में चलकर भी यह कार्य किया जा सकता है।
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(03). सावधानियां एवं ध्यान रखने योग्य बातें
- हमेशा उपचारित किये हुए बीजों की ही बुवाई करें।
- बीजों को अधिक गहराई पर बुवाई न करें।
- खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण पश्चात उपयोग में आने वाले खरपतवारनाशी का अनुप्रयोग करें।
- फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कु जाती है।
- बुवाई के समय कुल नत्रजन का 20% मात्रा ही उपयोग किया जाता है।
- मध्यम अवधि की फसल में नत्रजन की बाकी मात्रा 40% बियासी के समय, 20% ब्यासी के 20 से 25 दिन बाद एवं शेष 20% मात्रा ब्यासी के 40 से 50 दिन बाद डाली जाती है।
- हम जिस विधि की बात कर रहें हैं, उसे जल उपलब्ध होने के 30 से 35 दिनों के अंदर ही कि जानी चाहिए। चलाई का कार्य इसके 3 दिन बाद की जाती है।
- Biyasi हेतु संकरे फाल का ही उपयोग किया जाता है।
- यदि इस कार्य हेतु पर्याप्त मात्रा में जल न हो तो निंदाई करके उर्वरक डाला जाता है।
बियासी के दौरान धान के कुछ पौधे मर जाते हैं, अतः नर्सरी के अतिरिक्त पौधों का होना जरूरी है। यहाँ से गेप फिलिंग की जा सकती है।
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(04). अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 01. धान में बुवाई या खेती की अन्य विधियां कौनसी हैं?
उत्तर: धान में बुवाई या खेती की निम्न. विधियां हैं-
- खुर्रा बोनी विधि।
- रोपण विधि।
- सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन।
प्रश्न 02. यह विधि की प्रकार की भूमि में उपयुक्त होती है?
उत्तर: यह विधि निचली भूमि जहां जल का ठहराव हो सके, वहां उपयुक्त होती है।
प्रश्न 03. छत्तीसगढ़ में इस विधि को क्यों अपनाया जाता है?
उत्तर: छत्तीसगढ़ में इस विधि से 75 से 80% मात्रा में धान की खेती की जाती है, और इसके निम्न. कारण हैं-
- अधिक वर्षा।
- छोटे किसान।
- छोटे खेत।
- खेती हेतु देशी यंत्रों का उपयोग, उदाहरण- हल।
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