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Lehi Method in Rice Cultivation


लेही विधि से धान की खेती (Lehi method in paddy or rice)

What is lehi method in paddy or rice?

Lehi is a method of sowing or cultivation of rice or paddy. It is adopted in high rainfall areas. Pre germination is necessary in case of this method of sowing.

कृषकों को अधिकतर एक ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जहाँ अधिक या लगातार वर्षा होने की वजह से खुर्रा बोनी करने में समस्या होती है। वहीं बतर की स्थिति न होने की दशा में सीधी बुवाई में भी समस्या का सामना करना पड़ता है। अतः ऐसी स्थिति में धान की खेती करने की एक अन्य विधि अपनाई जाती है, इसे लेही विधि के नाम से जाना है।

धान बुवाई की यह विधि रोपण विधि से मिलती जुलती है, क्योंकि खेत की तैयारी की एक ही विधि अपनाई जाती है।

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Contents
(1). खेत की तैयारी
(2). उचित समय
(3). बीज अंकुरण करना
(4). विधि
(5). बीज की बुवाई
(6). शस्य क्रिया
(7). महत्व
(8). अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

(1). खेत की तैयारी

जब मानसून अपने अधिकतम सीमा में होती है तब निचली भूमि वाले धान के खेत पानी से भर जाते हैं। जल भराव वाले खेत में ट्रैक्टर के द्वारा मचाई (Puddling) की जाती है। मचाई की क्रिया बहुत ही अच्छे तरीके से की जानी चाहिए। खेत की तैयारी रोपाई विधि के समान ही करनी चहिए।

तैयार खेत में न तो जल भराव की स्थिति हो और न ही सूखे की स्थित। अतः जल भराव की स्थिति को नियंत्रण करने के लिए जल निकासी की व्यवस्था की जाती है।

(2). उचित समय

इस विधि से धान की खेती करने के लिए जून का दूसरा और तीसरा सप्ताह उचित रहता है।

(3). बीज अंकुरण करना

जल भराव की स्थिति में अगर बुवाई की जाए तब बीजों के सड़ने अर्थात खराब होने की प्रबल संभावना होती है। अतः बुवाई से पहले बीजों का अंकुरित होना अति आवश्यक है। बीज अंकुरण का कार्य बुवाई के 3 दिन पहले ही की जाती है।

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(4). विधि

  • अंकुरण करने हेतु बीज की एक मात्रा तय करें।
  • शाम के समय इन बीजों को पानी में भिगो दें।
  • अगले दिन, 8 से 10 घंटे बाद बीजों को पानी से निकाल लें।
  • अब इन बीजों को टाट से ढंक दिया जाता है।
  • यहां यह बात बहुत जरूरी है की बीजों को पक्के फर्श में रखें।
  • लगभग 24 घंटे के बाद बीज अंकुरित हो जाते हैं।
  • अब इन अंकुरित बीजों को छाया में फैलाकर रखें।
  • इस प्रकार ये बीज बुवाई के लिए तैयार होते हैं।

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(5). बीज की बुवाई

  • अंकुरित बीजों की बुवाई के लिए ड्रम सीडर का उपयोग किया जाता है।
  • ड्रम सीडर का उपयोग करने से पंक्तियों की दूरी स्वतः ही वांछित हो जाती है।

(6). शस्य क्रिया

इंटर कल्चरल ऑपरेशन के रूप में 15 – 20 दिनों में पंक्तियों के बीच पैडी वीडर चलाया जाता है। यह खरपतवार को नष्ट करने के काम आता है।

(7). महत्व

  • इस विधि से धान की खेती करने से अधिक मात्रा में कंसे निकलते हैं।
  • धान के पैदावार में 20 से 25% की बढ़वार होती है।

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(8). अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 01. धान के बुवाई की अन्य विधियां कौनसी हैं?

उत्तर: खुर्रा बोनी, कतार बोनी, रोपण विधि, श्री विधि।

प्रश्न 02. खरपतवार नियंत्रण हेतु कौनसी पैडी वीडर अच्छी होती है?

उत्तर: खरपतवार नियंत्रण हेतु अंबिका पैडी वीडर अच्छी होती है।

प्रश्न 03. क्या देशी हल से मचाई की जा सकती है?

उत्तर: हाँ, देशी विधि से मचाई की जा सकती है, परंतु इससे समय अधिक लगता है।

प्रश्न 04. यह विधि किस राज्य में अपनाई जाती है?

उत्तर: यह विधि मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में अपनाई जाती है। इसके अतिरिक्त झारखंड, उड़ीसा और मध्यप्रदेश के कुछ जिलों के कृषकों द्वारा अपनाई जाती है।

Key words: Lehi vidhi, rice, paddy, seed germination, cultivation, paddy weeder, ambika paddy weeder, puddling.

Key phrases: Method of cultivation in paddy, लेहि विधि से धान की खेती।

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